ram mandir ayodhya :आ गए रामलला क्या राम मंदिर बनने जा रहा है देश का सबसे बड़ा मंदिर ?जानें भारत के 5 सबसे बड़े ऐतिहासिक मंदिरों का इतिहास।Ram Lalla idol| largest hindu temples in india|

राम मंदिर अयोध्या (ram mandir ayodhya ):-

ram mandir ayodhya (राम मंदिर अयोध्या)का निर्माण नागर शैली में किया जा रहा है।यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर बनने वाला है  यह मंदिर 360 फीट लंबा, 235 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा होगा।जो 67 एकड़ में फैला हुआ है  मंदिर में पांच शिखर होंगे, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाएंगे। मंदिर के निर्माण में पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों का मिश्रण किया जा रहा है।

 लार्सन एंड टूब्रो ने मन्दिर के डिजाइन और निर्माण की नि:शुल्क देखरेख करने की पेशकश की और वह इस परियोजना के ठेकेदार हैं।[केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान, राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसन्धान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (जैसे बॉम्बे, गुवाहाटी और मद्रास) मिट्टी परीक्षण, कङ्क्रीट और डिजाइन जैसे क्षेत्रों में सहायता कर रहे हैं। रिपोर्टें सामने आईं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सरयू की एक धारा की पहचान की थी जो मंदिर के नीचे बहती है।

राजस्थान से आए 600 हजार क्यूबिक फीट बलुआ पत्थर बंसी पर्वत पत्थरों से निर्माण कार्य पूरा किया जाएगा।

Ram lala के दर्शन लिए के लिए कब खुलेगा मंदिर ? opening ram mandir ayodhya :

राम मंदिर(ram mandir ayodhya) का भव्य उद्घाटन समारोह दिनांक  22 जनवरी 2024 सोमवार को (PM narendra modi ji)के द्वारा किया जायेगा | जिसमे करीब 6000 से ज्यादा लोग इस ऐतिहासिक समारोह के साक्क्षी बनेगे | इस उद्घाटन के बाद भक्त मंदिर के दर्शन कर सकेंगे साथ ही इस मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहेगा | 

 अब इस लेख में, हम भारत के शीर्ष 5 सबसे बड़े हिंदू मंदिरों के बारे में जानेंगे, जिनमें से प्रत्येक मंदिर हिंदू धर्म के अनुयायियों की भक्ति और कलात्मक कौशल का प्रमाण देते है|

दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म में से एक सनातन धर्म अपने ऐतिहासिक प्राचीन धरोहर के रूप में भिन्न-भिन्न प्राचीन परंपराओं तथा अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है सनातन धर्म में अपने आराध्य की आराधना के लिए वैज्ञानिक विधि से ऐसे मंदिरो का निर्माण कराया गया है जिसे भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कोने कोने से लोग आते हैं तथा उनके अद्भभुत शिल्प और परंपरा उने आकर्षित करती है भारत में जहां उपासक अपने आराध्य से प्रार्थना, ध्यान, धार्मिक समारोह के माध्यम से आत्मीय अनुभूति करता है| पूरे विश्व में हिंदू धर्म में अनेकानेक मंदिर अपनी सुंदरता, भव्यता एवं विलक्षण कारीगरी, श्रद्धा एवं कुछ विशिष्ट महत्व के लिए जाने जाते हैं|

दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक हिंदू धर्म अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध परंपराओं के लिए जाना जाता है। हिंदू पूजा का केंद्र मंदिर हैं, जो प्रार्थना, ध्यान और धार्मिक समारोहों के लिए पवित्र स्थान के रूप में काम करते हैं। दुनिया भर में हिंदू मंदिरों की भीड़ में से कुछ अपने विशाल आकार और स्थापत्य भव्यता के लिए जाने जाते हैं। 

भारत के वर्तमान समय में सबसे 5 बड़े हिंदू मंदिर | top 5 Hindu mandir in india|

1.रंगनाथस्वामी मंदिर(Sri Ranganatha Swamy Temple) - Largest temple in india : -

पता: श्री रंगनाथर स्वामी मंदिर,
श्रीरंगम, तिरुचिरापल्ली – 620 006।
तमिलनाडु, भारत। 

रंगनाथस्वामी मंदिर जिसका एरिया लगभग 156 एकड़ में फैला हुआ ये है दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर जहां पूजे जाते हैं विष्णु अवतार भगवान रंगनाथ आपको जान के हैरानी होगी यह मंदिर वेटिकन सिटी जो सिर्फ 110 एकड़ में है जो मंदिर से बहुत छोटा है इस मन्दिर में 13000 से ज्यादा सीढ़ी है जिसके लिए आपको 10 km से भी ज्यादा चलना होगा मन्दिर में 7 अहाते है जिसमे 5 में मंदिर तथा 2 में मंदिर के कामकाज के लिए उपयोग होता है आप को जान के हैरानी होंगी इस मंदिर में 12 कुण्ड है जिसमे 2 कुंड तो इतने बडे है जिसकी जल संग्रह क्षमता २० लाख लीटर से भी ज्यादा है ,  दक्षिण मंदिर  में गोपुरम प्रवेश का द्वार माना जाता है जो इस मन्दिर में 21 है जिसमे मुख्य 236 फीट ऊंचा राजा गोपुरम है ,जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मन्दिर का टावर है जो इंडिया गेट से लगभग 100 फीट ऊंचा है इस मन्दिर के अलग अलग हिस्से विभिन्न राजाओं के द्धारा के बनाए गए हैं जिसमे चोला, पांड्या, होयसाला और विजय नगर जैसे साम्राज्य द्धारा किए गए कार्यों कि झलक मिलती हैं जहां शिलालेख तथा सैकडो मूर्तियां पर भगवान विष्णु के 108 रूप अंकित हैं यहाँ प्राकतिक रंग से बनीं चित्रकला अद्भुत कला का प्रतीक है|

मंदिर का संक्षिप्त इतिहास :

रंगनाथस्वामी मंदिर भगवान रंगनाथ का घर है, जो लेटे हुए मुद्रा में भगवान विष्णु का एक रूप है।

मंदिर के इतिहास की एक झलक पा सकते हैं, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार. वैकल्पिक विचारों से पता चलता है कि इसका निर्माण बाद में 9वीं शताब्दी में कावेरी के तट पर तलक्कडु में स्थित शासक राजवंश गंगा द्वारा किया गया था। फिर भी, मंदिर अगली कुछ शताब्दियों में धर्म और संस्कृति दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।                                                 अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के अलावा, श्रीरंगम मंदिर अपनी वास्तुकला की महिमा के लिए भी देखने लायक है। दुनिया का सबसे बड़ा कामकाजी हिंदू मंदिर, परिसर को सर्वोत्कृष्ट द्रविड़ वास्तुकला शैली में डिजाइन किया गया है।

 मुख्य आकर्षण एवं  त्यौहार :

रथ उत्सवएक और बड़ा त्योहार जिस पर मेहमानों को अवश्य ध्यान देना चाहिए वह है रतोथसवम या वार्षिक मंदिर रथ उत्सव। तमिल कैलेंडर के अनुसार थाई महीने के साथ मेल खाने के लिए जनवरी और फरवरी के बीच उत्सव मनाया जाता है, इसमें भगवान उत्सववर को एक समर्पित मंदिर रथ में मंदिर परिसर के चारों ओर ले जाया जाता है।यात्रा की योजना बनाते समय जिन अन्य त्योहारों पर विचार करना चाहिए उनमें पाविथ्रोथसवम, ऊँजल, चित्रा पूर्णिमा, वसंतोथसवम और कैसिगा एकादसी शामिल हैं।

श्री जयंती त्योहार में मंदिर परिसर में रहने वाले भगवान विष्णु के सभी रूपों के जन्मदिन का जश्न मनाया जाता है। मंदिर में 81 मंदिर हैं, जिनमें से अधिकांश भगवान विष्णु को समर्पित हैं, यह त्योहार वास्तव में विशेष अनुष्ठानों और जुलूसों के साथ मंदिर परिसर में एक भव्य समय का प्रतीक है।

चिथिराई थेर 13वीं शताब्दी में स्थापित एक त्यौहार, यह विजयनगर राजा द्वारा 17,000 सोने के सिक्कों के दान से मंदिर के नवीनीकरण की याद दिलाता है। यह विदेशी शासकों द्वारा इसके आक्रमण और जीर्णशीर्ण होने के कारण हुआ। नौ दिनों तक चलने वाला यह त्योहार तमिल कैलेंडर के अनुसार पंगुनी महीने के साथ मेल खाने के लिए मार्च और अप्रैल के बीच आयोजित किया जाता है। ब्रह्मोत्सवम के रूप में भी जाना जाता है, इस अवधि के दौरान आगंतुक भव्य जुलूसों, सभाओं और चारों ओर बहुत उत्साह देखने की उम्मीद कर सकते हैं।

 

 

2.श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर - (Sri Lakshmi Narayani Golden Temple : -

पता:श्री नारायणी पीदम/श्रीपुरम थिरुमालिकोडी, वेल्लोर - 632055, तमिलनाडु, भारत।

यह मंदिर 100 एकड़ भूमि पर स्थित है और इसका निर्माण वेल्लोर स्थित धर्मार्थ ट्रस्ट, श्री नारायणी पीदम द्वारा किया गया है, जिसके अध्यक्ष इसके आध्यात्मिक नेता श्री शक्ति अम्मा हैं जिन्हें ‘नारायणी अम्मा’ भी कहा जाता है।श्री लक्ष्मी नारायणी मंदिर दक्षिण भारत का स्वर्ण मंदिर से भी जाना जाता है जिसमे इतने सोने का प्रयोग किया गया है जितने किसी भी मन्दिर में नहीं किया गया इसमें लगभग 15 हजार किलो ग्राम से ज्यादा शुद्ध सोने का प्रयोग किया गया है , जो मन्दिर का मुख्य आकर्षण हैं इस मन्दिर को महालक्ष्मी मन्दिर भी कहा जाता है है मंदिर चारो ओर हरियाली मंदिर की आभा बड़ा देता है तथा मन्दिर के बाहर बना सरोवर में भारत की मुख्य नदियों से लाया गया पानी है मंदिर सुबह का 4 बजे से 8 बजे तक अभिषेक तथा सुबह 8 से रात 8 बजे तक दर्शन के लिए खोला जाता है इस मन्दिर में महालाक्षी को हाथो से 70 किलो ग्राम शुद्ध ठोस सोने की बनाई गई है हर एक कलाकृति को हाथो से शुद्ध सोने से बनाया गया है।

सोने से ढके इस मंदिर में सोने का उपयोग करके मंदिर कला में विशेषज्ञता रखने वाले कारीगरों द्वारा जटिल काम किया गया है। हर एक विवरण मैन्युअल रूप से बनाया गया था, जिसमें सोने की छड़ों को सोने की पन्नी में परिवर्तित करना और फिर तांबे पर पन्नी चढ़ाना शामिल था। नक़्क़ाशीदार तांबे की प्लेटों पर 9 परतों से लेकर 10 परतों तक सोने की पन्नी लगाई गई है। मंदिर कला में प्रत्येक विवरण का वेदों से महत्व है

 

श्रीपुरम के डिज़ाइन में एक तारे के आकार का पथ (श्री चक्र) है, जो हरेभरे परिदृश्य के बीच में स्थित है, जिसकी लंबाई 1.8 किमी से अधिक है। जैसे ही कोई बीच में मंदिर तक पहुंचने के लिए इससितारा नुमा पथपर चलता है, वह रास्ते में विभिन्न आध्यात्मिक संदेश भी पढ़ सकता हैजैसे मानव जन्म का उपहार, और आध्यात्मिकता का मूल्य।

Sripuram_Temple_Full_View

मंदिर का संक्षिप्त इतिहास :

स्वर्ण मंदिर, जिसे श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, देवी महालक्ष्मी को समर्पित है, भारत के तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित एक आध्यात्मिक परिसर है। देवी महालक्ष्मी को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 2001 में शुरू हुआ और 2007 में पूरा हुआ। पूरे मंदिर को जटिल सोने की परत और जटिल डिजाइनों से सजाया गया है, जो इसे क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक और वास्तुशिल्प स्थल बनाता है। इसकी सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व से आकर्षित होकर, भक्त और पर्यटक समान रूप से इसे देखने आते हैं।

थिरुपुरम आध्यात्मिक पार्क के अंदर स्वर्ण मंदिर वेल्लोर परिसर भारत के तमिलनाडु में थिरुमलाईकोडी  वेल्लोर में हरी पहाड़ियों की एक छोटी श्रृंखला के तल पर स्थित है। यह  बेंगलुरु से 200 किमी दूर है। मंदिर और उसके मुख्य देवता, श्री लक्ष्मी नारायणी या महा लक्ष्मी, धन की देवी, का महाकुंभाभिषेकम या अभिषेक 24 अगस्त 2007 को आयोजित किया गया था|

मुख्य आकर्षण एवं  त्यौहार :

1.स्वयंभू मंदिर :स्वयंभू मंदिर श्री नारायणी पीदम में स्थापित पहला मंदिर है। 1992 में, अम्मा ने घोषणा की कि 11 सितंबर को शाम 6 बजे स्वयंभू (एक पवित्र प्रतीक जो स्वयं प्रकट होता है) जमीन से प्रकट होगा।

2.श्री नारायणी मंदिर :श्री नारायणी मंदिर भारत का एकमात्र मंदिर है जो देवी श्री नारायणी को समर्पित है। निर्माण के चार साल बाद, मंदिर को 29 जनवरी, 2001 को पवित्रा किया गया था। देवी श्री नारायणी के नाम का जाप 750 शिवाचार्यों (पुजारियों) द्वारा नौ दिनों तक किया गया था।

3.शांति मंडपम: शांति मंडपम श्री नारायणी पीदम का हृदय है। यह अनोखा हॉल सैकड़ों भक्तों को समायोजित करता है और इसे जटिल रूप से तैयार किए गए हाथ से चित्रित भित्तिचित्रों और देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ डिज़ाइन किया गया है, जो गहन चिंतन और ध्यान के लिए एक वातावरण की सुविधा प्रदान करता है।

4.श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर:2007 में, श्री शक्ति अम्मा ने श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर का अभिषेक किया, जो सभी धर्मों के लोगों के लिए एक आध्यात्मिक स्थल बन गया है। 

5.श्री शक्ति गणपति:श्री शक्ति गणपति की ठोस चांदी से निर्मित और 1,500 किलोग्राम वजनी भव्य प्रतिमा, श्रीपुरम में उनके पूर्ण ग्रेनाइट मंदिर में स्थापित है। भगवान गणेश के रूप में भी जाने जाते हैं, वे सभी वैदिक पूजा अनुष्ठानों में बुलाए जाने वाले पहले देवता हैं।

6.पेरुमल मंदिरभगवान पेरुमल भगवान विष्णु का दक्षिण भारतीय नाम है। भगवान विष्णु भगवान की मर्दाना ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें ब्रह्मांड का ब्रह्मांडीय पोषणकर्ता और संरक्षक माना जाता है। 

7.महालक्ष्मी :श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी विराजमान हैं। उनके प्रत्येक हाथ में दो कमल हैं, तीसरा आशीर्वाद देने की स्थिति में और चौथा देने की स्थिति में। 


3.छतरपुर मंदिर (Chhatarpur temple):-

महरौली गुड़गांव रोड, छतरपुर – नई दिल्ली, 110030

दिल्ली के छतरपुर मन्दिर भारत का तीसरा सबसे बड़ा मन्दिर है यह मंदिर  लगभग 70 एकड़ में फैला हुआ है ,यह मन्दिर मां दुर्गा को समर्पित किया गया है इस मन्दिर में मां दुर्गा अपने छठे रुप में विराजमान है इस मन्दिर को आद्या कात्यायनी शक्ति पीठ मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है इस मन्दिर की स्थापना साल 1974 में बाबा संत नागपाल ने की थी इस मन्दिर में उनकी समाधि भी है दक्षिण भारत के मन्दिर से प्रीरित होकर बना ये विशाल मन्दिर अपनी अनोखी वास्तुकला के लिए बहुत प्रसिद्ध है जो यहां आय भक्तो को आकर्षित करती हैं इस मन्दिर में संगमरमर का प्रयोग विशेष रूप से किया गया है मां कात्यायनी देवी की प्रतिमा सोने से बनी हुई है कहा जाता है एक बार माता को वस्त्र समर्पित हों जाने पर दोबारा दोहराया नहीं जाता है मंदिर में प्रयोग किए जानें वाले फूल माला विशेष रूप से दक्षिण भारत से मंगवाए जाते है इस मन्दिर मंदिर की सबसे खास बात यह है कि ये मंदिर ग्रहण के दौरान भी खुला रहता है तथा नवरात्री के समय यह मन्दिर 24 घंटे खुला रहता है जिसने भक्त कभी भी इस मंदिर दर्शन कर सकते है। मां कात्यायनी के अलावा यहां 20 से जायदा छोटे बड़े मंदिर है जिसने माता सीता राम मंदिर,शिव मंदिर, मां अस्टभुजि जैसे कई मंदिर सामिल है साथ ही 101 फीट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा तथा विशाल त्रिशूल भी है जो भक्तो को विशेष रूप से आकर्षित करता है इस मन्दिर के बाहर एक विशाल पुराना पेड़ भी है इस पेड़ से जुड़ी एक मान्यता भी हैं इस पेड़ पर चुनरी धागा चूड़ियां बांधने से भक्तो की मनोकामनाएं पूर्ण होती है आप भी इस मन्दिर दर्शन करे।

 मंदिर का संक्षिप्त इतिहास :

इस शक्तिपीठ की कहानी इसके संस्थापक महान संत श्री दुर्गाचरणअनुरागी बाबा संत नागपाल के जीवन के इर्दगिर्द बुनी गई है, जो इतनी विनम्रता से भरे हुए थे कि अपने जीवनकाल में उन्होंने अपने शिष्यों को किसी भी तरह से अपने नाम का महिमामंडन करने की अनुमति नहीं दी। . ‘बाबा‘ (उनके भक्तों के लिए) का जन्म विक्रम संवत 1981 (तदनुसार मंगलवार 10 मार्च) में होली त्योहार के शुभ पूर्णिमा के दिन कर्नाटक में हुआ था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में अपने मातापिता को खो दिया था। यह उसकी माँ के दाह संस्कार के समय था कि एक अज्ञात महिला दुःखी बच्चे को पास के देवी माँ के मंदिर में ले गई और उसे बताया कि वह वास्तविक सार्वभौमिक माँ थी जो हमेशा उसके साथ रहेगी।

उस क्षण से, दिव्य माँ ने उसे अपनी गोद में आश्रय दिया। उनकी ओर से भी, यह विचार, शब्द और कर्म से दिव्य माँ के प्रति एक निर्विवाद समर्पण और पूर्ण समर्पण रहा है। बाबा के लिए, वह एक जीवित वास्तविकता थी जिसके साथ वह संचार में रहते थे और उनकी अनुमति और आशीर्वाद के बिना कभी कुछ नहीं करते थे।

मुख्य आकर्षण एवं  त्यौहार :

प्रेम मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इनके पत्तरो पर गोविंद राधा गीत उखेरे  है मंदिर में फल्लारे राधा कृष्ण की मनोहर झाकियां श्री गोविंद कालिया दमन लीला तथा गोवर्धन लीला उधानो के बीच से सजाई गई है 

 

4.श्री स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर (Swaminarayan Akshardham mandir ):-

                     स्वामीनारायण अक्षरधाम NH 24, प्रमुख स्वामी महाराज मार्ग, नई दिल्ली 110092

आज दिल्ली अक्षरधाम मंदिर के लिए भी जाना जाता है यह मंदिर 70 एकड़ में फैला हुआ है जो देश का चौथा सबसे बड़ा  मंदिर है जब से यह मंदिर बना है इसने देश विदेश के लोगों को अपना दीवाना बनाया हुआ है अक्षरधाम मंदिर की कहानी अक्षरधाम मंदिर बनाने का खयाल योगी जी महाराज को आया था उन्होंने ही 1967  में पहली बार सोचा था कि यमुना किनारे एक बड़ा सा मंदिर हो इसकी प्लानिंग को आगे बढ़ाया गया बहुत थोड़ी ही सही पर मंदिर बनाने में थोड़ी बहुत प्रगति भी हुई थी कि तभी योगी जी महाराज का निधन हो गया बहरहाल स्वामी नारायण संप्रदाय की योगी महाराज के इस खयाल का दिया बुझने नहीं दिया गया और योजना बनती चली गयी इसके बाद योगी जी महाराज के वारिस प्रमुख स्वामी महाराज ने 1971  में योगी जी का सपना एक बार फिर शुरू किया उन्होंने अपने शिष्यों को यह देखने के लिए भेजा की दिल्ली में कहाँ पर उनका मंदिर बन सकता है शिष्यों ने डीडीए को यह बात बताई और उन्होंने गाजियाबाद गुड़गांव और फरीदाबाद में कुछ खाली जगह बताई आखिर में प्रमुख स्वामी जी को योगी जी की तरह यमुना नदी के पास का इलाका ही पसंद आया 8  नवंबर 2000  को अक्षरधाम मंदिर बनाने का काम शुरू हो गया और इसके बाद कई सालों तक काम यूं ही चलता रहा अक्षरधाम मंदिर के निर्माण ने कई बार सुर्खियां भी बटोरी क्योंकि ये माना जा रहा था कि इससे यमुना नदी प्रदुषित होगी आखिर में मंदिर प्रशासन ने सरकार से क्लीयरेंस लेकर काम करना शुरू कर दिया और बेहद तेज गति से इसे पूरा भी किया जहाँ मंदिर बनना था उस जगह की मिट्टी पक्की नहीं थी इसलिए बिल्डिंग बनाने का काम थोड़ा मुश्किल था इसके लिए जमीन पर पहले 15  फिट ऊँचाई तक पत्थर और सीमेंट डाली गई ताकि उसके ऊपर मंदिर बनाया जा सके साधुओं की एक टीम कंस्ट्रक्शन का सारा काम देख रही थी क्योंकि वह पहले से ही अनुभवी थी वह सभी साधु गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर का निर्माण देख चूके थे हजारों की संख्या में कारीगर और शिल्पकार अक्षरधाम को पूरा करने में लगे हुए थे 6  नवंबर 2005  को भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर APJ अब्दुल कलाम के हाथों इस मंदिर की शुरूआत हुई इस अद्भुत मंदिर को देखने पहले दिन करीब 25000 मेहमान आये थे इस मंदिर के अंदर संपूर्ण भारत की प्रसिद्ध वास्तुकलाएं है यहाँ स्थापित भगवान की मूर्तियां भी बेहद सजीव प्रतीत होती हैं अक्षर धाम में करीब 234 सजाए हुए खंबे है और करीब 20000  मूर्तियां हैं साधु और आचार्यों की इसके अंदर 148  असली हाथियों जितनी बड़ी मूर्तियां भी है अक्षरधाम की असली पहचान है इसमें स्थापित स्वामी नारायण जी की मूर्ति क्योंकि उन्हें ही यह मंदिर समर्पित है यहाँ पर राम सीता राधा कृष्ण शिव पार्वती और लक्ष्मीनारायण इन सबकी सजी मूर्तियां स्थापित हैं यहाँ पर स्थापित अधिकतर मूर्तियां पांच धातुओं से बनी हुई है क्योंकि वह हिंदू धर्म के अनुसार बहुत शुभ माने जाते हैं आपने पहले ही दिन अक्षरधाम मंदिर एक बहुत बड़ा टूरिस्ट प्लेस बन चुका था रोजाना बहुत बड़ी संख्या में लोग इस अद्भुत मंदिर को देखने आते हैं कहते हैं की आज भी दिल्ली आने वाले 70 % टूरिस्ट अक्षरधाम मंदिर का एक चक्कर जरूर लगाते हैं 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान अक्षरधाम मंदिर एक बहुत ही खास आकर्षण का केंद्र बना था | 

 

 

मंदिर का संक्षिप्त इतिहास :
स्वामीनारायण अक्षरधाम परिसर का मुख्य आकर्षण अक्षरधाम मंदिर है। यह 141-फुट (43 मीटर) ऊंचा, 316-फुट (96 मीटर) चौड़ा और 356-फुट (109 मीटर) लंबा है। इसमें वनस्पतियों, जीव-जंतुओं, नर्तकों, संगीतकारों और देवताओं को बारीकी से उकेरा गया है।

अक्षरधाम मंदिर को बीएपीएस स्वामी और सोमपुरा परिवार के सदस्य वीरेंद्र त्रिवेदी द्वारा डिजाइन किया गया था।इसका निर्माण पूरी तरह से राजस्थानी गुलाबी बलुआ पत्थर और इटालियन कैरारा संगमरमर से किया गया है। अधिकतम मंदिर जीवन काल पर पारंपरिक हिंदू वास्तुशिल्प दिशानिर्देशों (शिल्प शास्त्र) के आधार पर, इसमें लौह धातु का कोई उपयोग नहीं होता है। इस प्रकार, इसमें स्टील या कंक्रीट का कोई समर्थन नहीं है। वास्तुकला मारू-गुर्जर वास्तुकला शैली से प्रेरित है।

मंदिर में 234 अलंकृत नक्काशीदार खंभे, नौ गुंबद और स्वामी, भक्तों और आचार्यों की 20,000 मूर्तियाँ भी हैं। मंदिर के आधार पर गजेंद्र पीठ भी है, जो हिंदू संस्कृति और भारत के इतिहास में हाथी के महत्व के लिए उसे श्रद्धांजलि अर्पित करने वाला एक चबूतरा है। इसमें 148 आदमकद हाथी हैं जिनका कुल वजन 3000 टन है।

मंदिर के केंद्रीय गुंबद के नीचे अभयमुद्रा में बैठे स्वामीनारायण की 11 फुट (3.4 मीटर) ऊंची मूर्ति है, जिन्हें मंदिर समर्पित है। स्वामीनारायण गुरुओं की आस्था के वंश की छवियों से घिरा हुआ है जो या तो भक्ति मुद्रा में या सेवा की मुद्रा में चित्रित हैं। प्रत्येक मूर्ति हिंदू परंपरा के अनुसार पंचधातु या पांच धातुओं से बनी होती है। मंदिर में सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती और लक्ष्मी-नारायण की मूर्तियाँ भी हैं।

5.प्रेम मंदिर (Prem mandir):-

                   श्री कृपालु महाराज जी मार्ग, रमण रेती, वृन्दावन, राजपुर खादर, उत्तर प्रदेश 281121

प्रेम मंदिर एक धार्मिक और आध्यात्मिक परिसर है जो भारत के मथुरा के वृन्दावन के बाहरी इलाके में 54 एकड़ की जगह पर स्थित है, जो श्री कृष्ण को समर्पित नवीनतम मंदिरों में से एक है। मंदिर की संरचना आध्यात्मिक गुरु कृपालु महाराज द्वारा स्थापित की गई थी। संगमरमर से बनी मुख्य संरचना अविश्वसनीय रूप से सुंदर दिखती है और एक शैक्षिक स्मारक है जो सनातन धर्म के सच्चे इतिहास को दर्शाती है। भगवान के अस्तित्व के आसपास की महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाने वाली श्री कृष्ण और उनके अनुयायियों की आकृतियाँ मुख्य मंदिर को कवर करती हैं।

जनवरी 2001 को [कृपालु महाराज] द्वारा आधारशिला रखी गई और उद्घाटन समारोह 15 फरवरी से 17 फरवरी 2012 तक हुआ। मंदिर 17 फरवरी को जनता के लिए खोला गया था। लागत 150 करोड़ रुपए (23 मिलियन डॉलर) थी। इष्टदेव श्री राधा गोविंद (राधा कृष्ण) और श्री सीता राम हैं। प्रेम मंदिर के बगल में 73,000 वर्ग फीट, स्तंभ रहित, गुंबद के आकार का सत्संग हॉल बनाया जा रहा है, जिसमें एक समय में 25,000 लोग बैठ सकेंगे।

 

  1. मंदिर का संक्षिप्त इतिहास :

वृन्दावन स्थल का विकास [कृपालु महाराज] द्वारा किया गया था जिनका मुख्य आश्रम वृन्दावन में था। 14 जनवरी 2001 को यहां काम शुरू हुआ। मूल सोम नाथ शैली में शुद्ध संगमरमर का मंदिर बनाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों के 800 से अधिक शिल्पकार, कारीगर और विशेषज्ञ दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। इसमें 11 साल लगे हैं और इसका विस्तार रु. 150 करोड़. निर्माण में विशेष कूका रोबोटिक मशीनों से तराशे गए 30,000 टन इतालवी संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर की लंबाई 122 फीट और चौड़ाई 115 फीट है। मंदिर में शिल्प कौशल की दक्षिण भारतीय संस्कृति का प्रभाव देखा जा सकता है। प्लान और डिजाइनिंग का काम गुजरात के सुमन और मनोज भाई सोमपुरा ने किया है। यह तीन फीट मोटी दीवारों वाली एक विशाल संगमरमर की संरचना है, जो पूरी तरह शुद्ध संगमरमर से बनी हैऔर इसके इष्टदेव राधा कृष्ण होंगे।

 मुख्य आकर्षण एवं  त्यौहार:

मंदिर होली के सम्मान में विशेष उत्सव आयोजित करता है। इस विशेष दिन पर राधा और कृष्ण को विशेष रूप से फूलों और रंगों से सजाया जाता है। इसके बाद फूलों और प्राकृतिक छटाओं की वर्षा होती है। देश और दुनिया भर से लोग इस होली उत्सव में भाग लेने के लिए यहां आते हैं।

शाम होते ही खास लाइटिंग के कारण वह हर 30 सेकंड में अलग-अलग रंग में सराबोर दिखता है। मंदिर के अंदर बैठकर श्रद्धालु कृष्णमय हो जाते हैं और इन सुखद क्षणों का आनंद लेते हैं। 

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